Tuesday, March 10, 2015

एक ग़ज़ल नई हे

दिल ने दिल से यारी की
या उससे गद्दारी की

प्यार जताया लूट लिया
ऐसी आपसदारी की

आहें ,दर्द ,कसक ,तड़पन
इनसे भी एय्यारी की

नए घोसलों पर देखो
बाज ने पहरेदारी की

तन ने मन का क़त्ल किया
पाप की गठरी भारी की

जागी सारी रात रमा
मन से मारामारी की

Friday, February 21, 2014

चारो और अंधरे घेरे
रहे उजाले भी मुंह फेरे
कैसे गीत रुपहले गाऊँ
कैसे अपना दिल बहलाऊँ

आज हवा फिर गर्म बही है
अंगारों ने बांह गहि है
भ्रम के फेले हुए क्षितिज पर
कौन गलत हे कौन सही है
वैसे दर्पण हैं बहुतेरे
अक्स हिलाते रहे सवेरे
मैं भी इनको समझ न पाऊं
कैसे अपना दिल बह्लाऊँ
 
 
 
 
आंधी ,धुंध ,धुँआ और काजल
उमड़ रहे हैं काले बादल
विष बनती अमृत -सी बूंदे
झिर -झिर हे सिंदूरी आँचल
जले हुंए हैं रैन  बसेरे
दूर तलक पत्थर के डेरे
देख इन्हें मैं डर-डर जाऊं
कैसे अपना दिल बहलाऊ
 
 
सारे जग की एक कहानी
फीकी पड गई चूनर धानी 
अधरों ने रह मौन कहा है
पढ़ लो तुम आँखों का पानी
दर्द हुए हैं और घनेरे
रहते हैं संग तेरे मेरे
इनको कैसे मैं बिसराऊँ
कैसे अपना दिल बहलाऊँ  

Tuesday, July 30, 2013

गीत -कैसी उलटी पवन चले

कैसी उलटी पवन चले
कांटे बनकर फूल खिले
अब हम क्या बतलाएं तुमको
          होम किया और हाथ जले
अनगिन  गलियां हैं जग की
जिनमे तू खो जायेगा
कबीरा का इकतारा फिर
ये ही गीत सुनाएगा
विश्वासों के घर में प्राणी
          अपना कह कर गए चले .
हमको केवल दर्द मिला
दु निया से सौगातों में
उजियारा भी कैद हुआ
काली -काली में
सुबह सुहानी ऐसी लगती
          जैसे कोई शाम ढले .
जिसने जीवन दिया वही अब
विष का प्याला लिया खड़ा
 हर धड़कन के पावों में
किसी दर्द का शूल गड़ा
जिनको हमने सागर समझा
          वो निकले छिछले छिछले .
                     रमा सिंह kaisi ulti peavan chal

Thursday, July 15, 2010

किसने ये सोचा था

किसने ये सोचा था अब तक यूँ होगा अलगाव बहुत
फूल, फूल को दे जायेंगे काँटों जैसे घाव बहुत

इस तट से उस तट तक जाना अब मुश्किल -सा लगता है
मांझी चुप, पतवारें टूटी, हैं कागज़ की नाव बहुत

इर्ष्या,द्वेष,जलन औ कुंठा , भाव ये सारे चंचल हैं
एक प्रीत ही इनमे ऐसी जिसमें है ठहराव बहुत

खाली सागर से अब क्यूँ तुम मांग के पानी पीते हो
हम तो हैं उस घट के प्यासे जिसमे है छलकाव बहुत

जिसको तेरा दिल माने तू काम वही करना ए 'रमा'
पाप- पुण्य के जंगल में मिलते रहते भटकाव बहुत

बंद करके हादिसो के

बंद करके हादिसो के अब ये तहखाने सभी
आईये खोलें मोहब्बत के ये मयखाने सभी

हम सियासत की अँगुलियों पर कभी नाचे नहीं
कह रहे हमसे छलक कर आज पैमाने सभी

ग़म से घबरा कर चले आये हैं मयखाने में हम
अब जहाँ आते हैं अपने दिल को बहलाने सभी

जन्म से हर एक धड़कन दर्द मे उलझी मिली
पर उसे भी आ गए हैं लोग बहकाने सभी

आग से ताप कर जो निकला वो 'रमा' कंचन हुआ
इस हकीक़त को बहुत ही देर मे माने सभी

दर्द मे लिपटी ग़ज़ल है

दर्द मे लिपटी ग़ज़ल है अब हमारी आपकी
लिख रही केवल असल है अब हमारी आपकी

जिस तरफ देखो नज़ारा एक ही मिल जायेगा
हर कोई करता नक़ल है अब हमारी आपकी

प्यार मे जब तक अहं था तब तलक मुश्किल लगी
राह ये कितनी सरल है अब हमारी आपकी

आपके ये रंग जब तक ज़िन्दगी के साथ हैं
हर सुबह मीठी तरल है अब हमारी आपकी

कल 'रमा' रंगीन सपने ही जहाँ देखे गए
आज क्यों आँखों मे जल है अब हमारी आपकी