Wednesday, July 14, 2010

मेरे मन मे झाँक के देखो

मेरे मन मे झाँक के देखो कितने प्यारे से हो तुम
जिसकी अनगिन छवियाँ है उस एक नज़ारे से हो तुम

जिसमे कोई शब्द नहीं है और न स्वर ही है कोई
चुप रह कर भी बोले ऐसे एक इशारे से हो तुम

हम दोनों के बीच अनोखी नदिया बहती रहती है
एक किनारे जैसे हूँ मैं ,एक किनारे से हो तुम

तुम्हे सहेजे रखना कितना मुश्किल ,कितना मुश्किल है
मनहै कम्पित एक हथेली,चंचल पारे से हो तुम

एक अँधेरी धरती ,सूरज के उजियारे से बोली
जिसको छूकर ठंडक मिलती उस अंगारे से हो तुम

शब्द नहा कर जिसमे देखो मंत्र स्वयं बन जाते हैं
ऐसी पावन स्वर गंगा के पावन धारे से हो तुम

ढाई आखर प्रेम का जिसमे गूँज रहा है सदियों से
इस दुनिया के मन मंदिर में प्रिय इक तारे से हो तुम


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