Monday, July 5, 2010

ऐ सुबह

ऐ सुबह कल फिर से आना राह देखेंगे तेरी
रात से उलझी रही वो चाह देखेंगे तेरी

दुख का विप पीकर भी तूने प्यार ही बाँटा सदा
फिर भी जो उपजी है मन में राह देखेंगे तेरी

पास आकर एक सागर से नदी ने यह कहा
डूबने दे मुझको खुद में, थाह देखेंगे तेरी

बेवजह तोड़े किसी ने फूल जब भी डाल से
उस घड़ी दिल से निकलती आह देखेंगे तेरी

हो गई पूरी गज़ल तो देख लेना ऐ 'रमा'
प्यार से निकली हुई हर वाह देखेंगे तेरी

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