Monday, July 5, 2010

सारी गलियाँ सूनी

सारी गलियाँ सूनी-सूनी, हर बस्ती वीरान लगी
अब तो हर पहचानी सूरत भी मुझको अनजान लगी

क्या बतलाएँ जब भी बादल आँसू बनकर बरसे हैं
उनकी रिमझिम भी सागर को एक नया तूफ़ान लगी

जब भी कोई रस की प्याली रस छलकाकर टूट गई
मुझको जाने क्यों वह तेरा टूटा-सा अरमान लगी

पहले तो हर मुश्किल मुझ पर पत्थर बनकर गिरती थी
जब से तुम हो साथ हमारे हर मुश्किल आसान लगी

तुझसे अपनी कहकर अपना जी हल्का कर लेते हैं
पर तेरी हर पीड़ा मुझको जीवन का अवसान लगी

7 comments:

  1. अच्छी रचना ।

    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  2. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया। बहुत अच्छा लगा आपकी कविताओं को पढ़कर। ग़ज़ल के रूप में सुन्दर भावाव्यक्तियाँ !

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  3. बहुत बहुत खूब

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  4. जब से तुम हो साथ हमारे हर मुश्किल आसान लगी..
    शानदार अभिव्यक्ति.. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
    इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक साथी कृपया यहां पधारें - http://gharkibaaten.blogspot.com

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  5. वाह वाह...
    बेहतरीन
    अच्‍छी लगी आपकी रचना और आपका ब्‍लॉग
    http://chokhat.blogspot.com/

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  6. हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  7. " बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नहीं हो सकता "

    हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये लिंक पर जाकर रजिस्टर करें . http://www.janokti.com/wp-login.php?action=register,
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